BANYAN TREE

समरहिल

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ए. एस. नील

Pp. 240/2008/PB

Rs. 125



सारे जुर्म, सारी नफरत, सारी लड़ाइयों की जड़ में हमारी नाखुशी है. यह किताब दिखने की कोशिश करती है की दुख कैसे पैदा होता है, कैसे वह इन्सान के जीवन को बर्बाद करता है और बच्चों की परवरिश कैसी हो की नाखुशी की गुंजाईश ही न रहे I 

असफल स्कूल

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जॉन होल्ट

Pp. 185/2006/PB

Rs. 80


यहाँ असफल स्कूल में, होल्ट ने आजकल की शिक्षा की विशेष समस्याओं का निरीक्षण किया है : परीक्षण का उत्पीडन, कालेज के लिए चूहा-दौड़, अनिवार्य उपस्तिथि, पढने संबंधी असफलताएं, तथा शिक्षक जो बहुत ज्यादा बोलते हैं I

अध्यापक के नाम पत्र

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खतरा स्कूल

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विनोद रायना

Pp. 240/2008/PB

Rs. 50

स्कूलिंग व्यवस्था पर दुनिया का सबसे व्यंग्यात्मक कटाक्ष. पुस्तक में ब्राजील के प्रसिद्ध राजनेतिक कार्टूनिस्ट क्लोडियेस ने पुस्तक की हुलिया को कार्टूनो  के जरिए बेहद सटीक ढंग से दर्शाया है. पुस्तक को मशहुर शिक्षाविद पोलो फ्रेरे के जनेवा स्थित केंद्र - इंस्टिट्यूट फॉर कल्चरल एक्शन आईडेक ने तैयार किया हैI यह पुस्तक हर एक माँ-बाप के लिए पढना जरुरी है - यह जानने के स्कूल उनके बच्चो के साथ किस बुरी तरह से पेश आते हैI इस पुस्तक को पढ़कर शायद माँ-बाप, स्कुलो द्वारा किये जा रहे अत्याचारों पर कुछ लगाम लगा सकें I


स्कूलों के नाम पत्र
भाग-१

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जे कृष्णमूर्ति

Pp. 114/1998/PB

Rs. 60


ये पत्र ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें आप थोडा-बहुत समय निकालकर यदा-कदा पढ़ लिया करेंI न ही ये आपके मनोरंजन के लिए हैंI ये पत्र गंभीरतापूर्वक लिखे गए हैं और यदि आप इन्हें पढने को इच्छुक हैं, तो इस उद्देश्य से पढ़ें की जो कहा गया है उसका आपको अध्ययन करना है, जैसे आप एक फूल का अध्ययन करेंगे, इसको अत्यंत सावधानी पूर्वक देखते हुए -  इसकी पंखुड़ियाँ, इसका डंठल, इसके रंग, इसकी सुगंध और इसका सौन्दर्य. इसी ढंग से इन पत्रों का अध्ययन करना चाहिये. और ऐसा नहीं की सुबह को पढ़ा और दिन भर में इसको भूल गये. आप इसको समय दे, इसके साथ खेलें; बिना स्वीकृति के इस पर शंका करें, इसकी जाँच-पड़ताल करें; कुछ समय तक इसके साथ जियें और फिर इसे आत्मसात कर लें ताकि यह लेखक का नहीं बल्कि आपका हो जाये I


स्कूलों को पत्र
भाग-२

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जे कृष्णमूर्ति

Pp. 65/2001/PB

Rs. 40


मनुष्य का समग्र अंतर-बाह्य प्रस्फुटन जे. कृष्णमूर्ति की शिक्षा के केंद्र में हैI इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने आरंभ से ही बच्चों की सम्यक एवं समग्र शिक्षा पर बल दिया I

बचपन से पलायन

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जॉन होल्ट

Pp. 240/2008/PB

Rs. 90



बचपन से पलायन मुक्ति के बारे में है ... हरेक की मुक्ति!

बचपन से पलायन मुक्ति के बारे में है ... हरेक की मुक्ति! कितनी बार ऐसा होता है की बच्चो को सुरक्षित रखने की आड़ में बच्चो को बचपन के "दीवारों से घिरे बगीचे" में रखा जाता है जहाँ वे मानवीय अनुभव की दुनिया से पूरी तरह अछूते रहते हैं, आजकल के कितने एकल परिवार बच्चों तथा उनके माता-पिता के लिए भी कारागार बन गए हैं I

बच्चों का जीवन

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जोर्ज डेनिसन

Pp. 220/1999/HB

Rs. 225


यह पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान की स्थापनाओं को व्यावहारिक धरातल पर देखने परखने का मार्ग सुझाती है. लेखक ने यहाँ २३ बच्चो वाले एक निजी स्कूल में किये गए प्रयोगों तथा उनसे प्राप्त अनुभवों के माध्यम से अपनी बात पेश की है I

शिक्षा की बजाय

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जॉन होल्ट

अध्यापक

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सिल्विया एशटन वारनर

Pp. 160/2004/PB

Rs. 75


यह पुस्तक न्यूज़ीलैंड के माओरी बच्चो को शिक्षा को समर्पित एक अध्यापिका के जीवनुभावो का निचोड़ और बालकेन्द्रित शिक्षण पद्धति का सृजनात्मक दस्तावेज है I इसे ही लेखिका ने सहज शिक्षण कहा हैI बच्चो को केंद्र में रखकर शिक्षा देना बहुत कठिन काम है. अगर अध्यापक में कल्पना, संवेदनशीलता और आनंद पैदा करने की क्षमता नहीं है तो वह अपनी कक्षा को जीवंत नहीं बना सकता और आनंद रहित शिक्षण बच्चो के लिए दंड है और अध्यापक की असफलता का घोतक भी I

सीखना दिल से...

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संयुक्ता

Pp. 155/2010/PB

Rs. 80


अधिकांश युवा कॉलेज के व्यखानों से जुड़े नीरस श्रम और ऊब से, बासे प्राध्यापको से, और अंतहीन परीक्षाओं से मुक्त होना चाहेंगेI संयुक्ता  की जीवन्त किताब सीखना... दिल से  भविष्य में कॉलेज या विश्वविद्यालय की शिक्षा के प्रति इन युवाओं की सोच को नाटकीय ढंग से बदल सकती हैI
आन्ध्र के एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार की संयुक्ता ने शिक्षा क्षेत्र की चुहा दौड़ और एमबीए जैसी डिग्रियों के पीछे होने वाली भागमभाग से बचने का निर्णय लियाI कॉलेज का जकड़जामा स्वीकार करने की बजाय उसने अपने खुद की "उच्च शिक्षा" पाठ्यचर्या बनाई जो उसके दिल और दिमाग, दोनों के अनुकूल थी. उसके इसी सफ़र को बयान करती है, "सीखना ऐसे की जिसमें दिल भी साथ हो I"


शिक्षा एवं जीवन का तात्पर्य

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जे कृष्णमूर्ति

Pp. 99/2005/PB

Rs. 60


शिक्षा को संपूर्ण जीवन एवं मनुष्य के समग्र प्रस्फुटन से जोड़ता हुआ कहता है: "हम शिक्षक ही यदि स्वयं को गहराई से नहीं समझते तथा बच्चों के साथ अपने रिश्ते को ही मौलिक रूप से नहीं समझते, और उसे केवल जानकारियों से भरने एवं परीक्षाएं पास करवाने में लगे रहे हैं, तो हम कैसे एक नए ढंग की शिक्षा ला सकेंगे? यदि मार्गदर्शक स्वयं ही भ्रांत हो, संकीर्ण हो, राष्ट्रवादी तथा मतान्ध हो तो स्वाभाविक है की उसका शिष्य भी वैसा ही होगा I


दीवार का इस्तेमाल

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कृष्ण कुमार

Pp. 105/2008/PB

Rs. 60

और अन्य लेख ...

इस पुस्तक में शामिल किये गए छोटे लेख अपने मूल रूप में अलग-अलग अखबारों और पत्रिकाओ में प्रकाशित हुए थेI इस तरह की संक्षिप्त टिप्पणियों में यह सुविधा रहती है की शिक्षा के व्यापक और आम तोर पर निराश करने वाले परिदृश्य को कुछ बारीकी से, किसी एक प्रसंग में देखा और चित्रित किया जाए I


रविन्द्रनाथ का शिक्षा दर्शन

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रविंद्रनाथ ठाकुर

अनारको के आठ दिन

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सत्यु

Pp. 105/2004/PB

Rs. 40




लोकतांत्रिक विद्यालय

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माइकल डब्लू एपल व       जेम्स ए बीन

Pp. 152/2007/PB

Rs. 80


लोकतांत्रिक विद्यालय चार विद्यालयों की कहानी है. ये ऐसे विद्यालय हैं जिन्होंने अपने संपूर्ण पाठ्यक्रम का आधार लोकतांत्रिक और आलोचनात्मक शिक्षण पद्धतियों को बनाया हैI ये विद्यालय छात्रों और समुदाय की जरूरतों तथा उनकी संस्कृति और इतिहास पर आधारित शिक्षा के लिए प्रतिबंधित हैं.ये नस्लवाद विरोधी, समलेंगिकता भय विरोधी और सरोकार के गिर्द संयोजित हैं I

बच्चे असफल कैसे होते हैं

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जॉन होल्ट

Pp. 283/2002/PB

Rs. 75





द न्यू यॉर्क रिव्यू ऑफ़ बुक्स ने जॉन होल्ट को पिआजे के समकक्ष ठहराया. लाइफ पत्रिका ने उन्हें "तर्क की विनम्र आवाज" कहा. मील का पत्थर बन चुकी इस तर्कसंगत व मोलिक पुस्तक की अब तक लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैंI
इस विस्तृत और संशोधित संस्करण में शिक्षा के क्षेत्र में जॉन होल्ट के लगभग डेढ़ दशक के और अनुभव का भी समावेश है. इस पुस्तक में जॉन होल्ट ने बच्चो को खेलने, सीखने और बड़े होने की आज़ादी मिलने की पैरवी की है ताकि बच्चे अपनी क्षमताओं के शिखर पर पहुँच सकें I


नयी शिक्षा

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श्री अरविन्द सोसाइटी पोंडिचेरी

Pp. 119/1999/PB

Rs. 35


श्री अरविन्द हमारे बीच उपस्तिथ हैं. और अपनी समस्त स्रजनात्मक प्रतिभा की शक्ति के साथ वे इस विश्व-विद्यालय केंद्र की रचना की अध्यक्षता कर रहे है.जिसे वे वर्षो से भावी मानवजाति को उस अतिमानसिक प्रकाश को ग्रहण करने योग्य बनाने का सर्वोत्तम साधन मानते थे जो आज के श्रेष्ठ वर्ग को एक नयी जाती में बदल देगा जो प्रथ्वी पर नए प्रकाश शक्ति और जीवन को अभिव्यक्त करेगी I

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